July 10, 2008

मुझे माफ करना कॉरल.....

क्‍या होता है प्‍यार, क्‍या होता है उसका निबाह और क्‍या होता है किसी के लिए खुद को फना कर देना....। ये सब हम फिल्‍मों में देखते हैं। महसूस करते हैं और कई बार अपनी आंख भी भिगो लेते हैं। लेकिन मैंने प्‍यार का जो साक्षात रूप अपने जीवन में देखा वो अतुलनीय है। उससे मिलने के बाद ही मैंने जाना प्‍यार क्‍या होता है। कैसे एक औरत अपने निपट अकेलेपन के जंगल में प्रेम के धुंधले जुगनू को देखते हुए पूरा जीवन बिता देती है। कैसे वो मौत के बिस्‍तर पर पड़ी रहकर भी अपने प्रेम को याद कर ठहाका लगा सकती है। प्रेम में कितनी ताकत होती है ये मैंने कॉरल को देखकर जाना था। उसने प्रेम किया लेकिन ईश्‍वर ने उसके भाग्‍य में सिर्फ अकेलापन और दर्द लिखा था। वो भागती रही उससे, लेकिन समय का फंदा उसे फंसा ही लेता था हर बार। एक औरत के लिए प्रेम कितना महंगा साबित हो सकता है, किस तरह से उसकी जिंदगी मौत से बदतर हो जाती है, मैंने कॉरल को देखकर जाना। लेकिन सच यह भी था कि कॉरल का देखकर ही पता चला कि उसी सुनसान बियाबान में प्रेम एक खुशबू की तरह वजूद को कैसेट महकाता रहता है। उस औरत के प्‍यार, इंतजार और तड़प को सलाम करती हूं मैं। मेरा विश्‍वास प्रेम पर है और इसीलिए मैं अपने ब्‍लॉग की शुरुआत इसी प्रेमकहानी के साथ कर रही हूं। मैं किसी न किसी तरह खुद को अपराधी महसूस करती हूं कि उसकी कोई मदद नहीं कर पाई, शायद कॉरल इसके लिए मुझे माफ कर दे। ये पोस्‍ट कॉरल को समर्पित हैं......

छह साल बाद मैं अपने शहर चंडीगढ़ में दोबारा लौटी हूं। कई दिनों से सोच रही थी कॉरल से मिलने के लिए। इन बरसों में इस शहर की यादों ने मेरे साथ सफर किया है। इनमें कॉरल की याद भी थी। अनायास मैं उसके घर की तरफ मुड़ चली। हालांकि उसके घर का नंबर याद नहीं था पर याद था वो घर जिस एनेक्‍सी में वो अकेली रहा करती थी। मैंने उसे अपने अखबार के लिए एक बार इंटरव्यू किया था। उसके बाद मैं अक्‍सर उससे मिलने जाने लगी थी। मैंने उसका मकान ढूंढ लिया। लेकिन यहां एक सदमा मेरा इंतजार कर रहा था। पता चला कि दो साल पहले ही उसकी मौत हो चुकी है। पड़ोस के लोगों से पूछा तो उन्‍होंने बताया-हां यहां एक ऑस्‍टरेलियन बूढ़ी औरत यहां रहती थी लेकिन उसे मरे दो साल हो गए। कॉरल इस दुनिया से वहां जा चुकी है जहां से कभी वापस नहीं आएगी। लेकिन उसकी आत्‍मा अगर कहीं से भी मुझे देख पा रही है तो मुझे माफ कर दे क्‍यों‍कि मैं उसकी आखिरी चाह पूरी नहीं कर सकी।
उसके पास यादें थीं। बच्‍चों की, उसके देश की, मदर टेरेसा की....उस जिंदगी की भी जिसकी वास्‍तवकिता काफी नाटकीय रही। सबसे दूर, बहुत बीमार, और उम्र के उस पड़ाव पर जहां यादें तंग करती हैं और सपने जवाब दे जाते हैं। सेक्‍टर 11 में एक कोठी की एनेक्‍सी में पड़ी कॉरल शेफर्ड के पास एक ही इच्‍छा थी कि वो एक बार मरने से पहले ऑस्‍टरेलिया जा बसी अपनी बेटी कॉलिन को एक बार देख सके। उसे मालूम था कि यह इच्‍छा जल्‍दी से पूरी होने वाली नहीं है। ऐसे में मैं शायद फरिश्‍ता लगती थी। वह मुझसे बहुत सारी बातें करती थी, जीवन की हर जंग में हारी कॉरल टूटी-फूटी हिंदी बोला करती थी। उसे बहुत उम्‍मीदें थी शायद मुझसे। हमेशा मुस्‍कुराती और हंसती, लेकिन बीच में ही आंसुओं में डूबकर रोना शुरू कर देती। वह चाहती थी कि उसकी हालत की खबर उसकी बेटी तक पहुंच जाए। उसके पास एक अटेंडेंट थी जो चलने, फिरने से लाचार कॉरल का सहारा थी। उस दिन मेरे सामने ही फोटो खिंचवाने के लिए उस अटेंडेंट शारदा से मेकअप करवाया। उसके होंठ सुर्खी से रंगे थे और आंख आंसुओं से।
एक जमाने में कॉरल हसीन थी, उसने प्‍यार किया था, और इस तरह किया था कि वह खुद को भी भूल गई। पागलपन की हद तक प्‍यार में डूब गई थी एक इस शहर में रहने वाले एक युवा होम सेक्रेटरी के। तब वह यहां किसी रिश्‍तेदार से मिलने आई थी। उस होम सेक्रेटरी से उसकी शादी नहीं हो सकी थी लेकिन वह यहीं की होकर रह गई थी। कॉरल ने बताया-हम यहां आंटी के पास आया था लेकिन होम सेक्रेटरी के लिए यहीं रह गया।

8 comments:

Som said...

Lovely write up. I enjoyed it.

Manisha ji, i was searching some Blogs in Hindi as am very fond of reading Hindi. I found your blog impressive.

Am wondering whether it's your first post?

Ashok Pande said...

अच्छी शुरुआत है. अपराध बोध जगाने वाली ऐसी ही स्मृतियां हमें मानव बनाती हैं.

लिखती रहिए.

शुभकामनाएं.

anurag vats said...

aapki bhasha bahut achhi hai...yhi wajah hai ki ek bhwuk aur trasad katha ko bhi aapne samhaal kr likha...aapko aur padhne ka mauka milega...aisi umeed hai...shubhkamnaon sahit...

सुभाष नीरव said...

मनीषा, स्वागत करता हूँ तुम्हारा इस ब्लाग की दुनिया में। शुरूआती ही पोस्ट इतनी खूबसूरत ! चाहते हुए भी कुछ न कर पाने का अपराध-बोध अगर हमारे अन्दर उपजता है तो इसके मायने हैं कि हमारे भीतर से संवेदना अभी मरी नहीं है। संवेदनशील लेखक लिखकर उस बोध को कुछ तो कम कर ही लेता है। ऐसा ही लिखती रहो।

रंजू भाटिया said...

बहुत ही भावुक लफ्जों में आपने यह लिखा है ..लिखती रहे यही भी दिल कि बात हल्का करने का एक बहुत अच्छा तरीका है ..

अनिल जनविजय said...

आपका यह संस्मरण मुझे पसन्द आया।
अनिल जनविजय

रूपसिंह चन्देल said...

सुश्री मनीषा,

अंतर्मन को छू जाने वाला संस्मरण है. भाषा भी खूबसूरत है आपके पास, लेकिन संस्मरण अधूरा है. क्या इसे आगे जारी रखेगीं, यदि ऎसा है तो आपको यह उल्लेख करना चाहिए था. यदि नहीं तो पुनः आपको कॉरेल के विषय में लिखना चाहिए . आप अच्छा लिखती हैं और कॉरेल से जुड़े न केवल उसके-अपने संबन्धों पर प्रकाश डालना चाहिए आपको बल्कि उसके प्रेमी और बेटी के रिश्तों को भी विस्तार देना चाहिए. आशा है अगली किश्त कॉरेल पर ही होगी.

चन्देल

मनीषा भल्ला said...

सोम, सुभाष जी, अशोक जी, अनुराग जी, रंजना जी, जनविजय जी और रूप सिंह चंदेल जी आप सबका शुक्रिया। आपने पोस्‍ट पढ़कर अपने विचार दिए। चंदेल साहब आपने सही कहा यह सीरिज ही है। अगली किस्‍त में कॉरल की कहानी खत्‍म होगी। क्षमा करें, जारी है लिखना रह गया इस पोस्‍ट में। आशा है आप सबका स्‍नेह मिलता रहेगा।